डाॅ. राकेश कुमार गुप्ता & श्रीमती वर्षा दुबे
सारांश -
छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा शुरू की गई गोठान योजना राज्य की ग्रामीण अर्थव्यवस्था को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में एक क्रांतिकारी पहल है। गोठानों के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों में पशुपालन, वर्मी कम्पोस्ट, गौमूत्र आधारित उत्पाद, हस्तशिल्प, बागवानी एवं अन्य कृषि आधारित गतिविधियों को बढ़ावा दिया गया है। इस योजना का मुख्य उद्देश्य ग्रामीण रोजगार सृजन, महिला सशक्तिकरण, युवाओं को कार्य के अवसर प्रदान करना तथा स्थानीय स्तर पर पलायन को रोकना है। इस शोध-पत्र का प्रमुख उद्देश्य गोठानों के निर्माण से उत्पन्न रोजगार अवसरों का अध्ययन करना है। अनुसंधान से प्राप्त तथ्यों के अनुसार, गोठानों ने ग्रामीणों को न केवल स्थायी आजीविका दी है, बल्कि उनके परिवार की आय में भी वृद्धि की है। गोठानों से जुड़ी गतिविधियों जैसे वर्मी कम्पोस्ट उत्पादन, पशुपालन, कृषि सहायक कार्यों एवं गो-आधारित उत्पाद निर्माण ने ग्रामीणों के लिए नये रोजगार के द्वार खोले हैं। विशेष रूप से महिलाओं और युवाओं को स्वावलंबी बनने के अवसर प्राप्त हुए हैं। इस अध्ययन से यह निष्कर्ष निकलता है कि गोठान योजना ने न केवल ग्रामीण रोजगार में वृद्धि की है, बल्कि ग्राम अर्थव्यवस्था को भी सशक्त बनाया है। यह शोध भविष्य में ग्रामीण विकास की नीतियों के लिए एक महत्वपूर्ण दिशा प्रदान कर सकता है।
मुख्य शब्द - गोठान योजना, ग्रामीण रोजगार, महिला सशक्तिकरण, पशुपालन गतिविधियाँ, ग्राम अर्थव्यवस्था
परिचय -
भारत की अर्थव्यवस्था में ग्रामीण क्षेत्र की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण रही है। ग्रामीण विकास का आधार कृषि, पशुपालन और श्रम आधारित उद्योगों पर निर्भर करता है। छत्तीसगढ़ राज्य में ग्रामीणों की आय एवं जीवन स्तर में सुधार लाने के लिए अनेक योजनाएँ चलाई गई हैं, जिनमें गोठान योजना विशेष रूप से उल्लेखनीय है। इस योजना का उद्देश्य ‘नरवा, गरवा, घुरवा, बारी’ की अवधारणा के माध्यम से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को आत्मनिर्भर बनाना है। गोठान न केवल पशुओं के रख-रखाव का केंद्र हैं, बल्कि यह ग्रामीणों को स्थानीय रोजगार उपलब्ध कराने का माध्यम भी बन गए हैं। इन केंद्रों पर पशुपालन, वर्मी कम्पोस्ट, बायो-गैस उत्पादन, जैविक खेती, चारागाह विकास तथा अन्य उत्पादक कार्य किए जाते हैं। इससे ग्रामीणों को अतिरिक्त आय के अवसर मिलते हैं और महिलाओं तथा युवाओं को स्वरोजगार की दिशा में प्रेरणा मिलती है। इस अध्ययन का उद्देश्य यह विश्लेषण करना है कि गोठानों ने किस प्रकार ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के नए अवसर उत्पन्न किए हैं, पारिवारिक आय में वृद्धि की है, और स्थानीय स्तर पर पलायन की समस्या को कम किया है।
मुख्य विषय -
गोठान योजना का मुख्य उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्र में सतत् आजीविका सुनिश्चित करना है। छत्तीसगढ़ में लगभग हर ग्राम पंचायत में गोठान स्थापित किए गए हैं, जहाँ पशुओं के संरक्षण के साथ-साथ विभिन्न उत्पादक गतिविधियाँ संचालित की जा रही हैं। इन गतिविधियों से ग्रामीण जनसंख्या को न केवल रोजगार मिला, बल्कि उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार भी हुआ है। गोठानों ने पशुपालन के साथ-साथ वर्मी कम्पोस्ट, जैविक खाद, फूल-पत्ती प्रसंस्करण, और हस्तनिर्मित वस्तुओं के उत्पादन को बढ़ावा दिया है। इससे न केवल पुरुष बल्कि महिलाएँ और युवा भी इन कार्यों में सक्रिय रूप से जुड़ रहे हैं। गोठानों से उत्पन्न रोजगार स्वरूप नियमित और स्थायी प्रकृति का है, जिससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था को स्थायित्व मिला है।
शोध कार्य एवं अनुसंधान पद्धति -
शोध का उद्देश्य
गोठानों के निर्माण से ग्रामीण रोजगार में हुए परिवर्तनों का अध्ययन करना।
ग्रामीण परिवारों की आय में हुई वृद्धि का विश्लेषण करना।
गोठान आधारित गतिविधियों में महिला और युवाओं की भागीदारी का मूल्यांकन करना।
स्थानीय पलायन में कमी के कारणों का परीक्षण करना।
शोध का क्षेत्र -
यह अध्ययन छत्तीसगढ़ राज्य के चयनित जिलों के ग्रामीण क्षेत्रों में किया गया, जहाँ गोठानों की स्थापना की गई है। चयनित गाँवों में रायपुर, बिलासपुर, कोरबा और महासमुंद जिले के गोठानों को नमूने के रूप में लिया गया।
शोध की प्रकृति -
यह शोध वर्णनात्मक (क्मेबतपचजपअम) तथा विश्लेषणात्मक (।दंसलजपबंस) दोनों प्रकृति का है। इसमें प्राथमिक एवं द्वितीयक दोनों प्रकार के डेटा का प्रयोग किया गया है।
डेटा संग्रह की विधियाँ -
प्राथमिक डेटा - ग्रामीण परिवारों, महिला स्व-सहायता समूहों (ैभ्ळे), गोठान प्रबंध समितियों और स्थानीय पंचायत अधिकारियों से साक्षात्कार एवं प्रश्नावली के माध्यम से जानकारी प्राप्त की गई।
द्वितीयक डेटा - विभिन्न सरकारी रिपोर्ट्स, पंचायती राज विभाग के दस्तावेज, आर्थिक सर्वेक्षण, और योजनाओं से संबंधित प्रकाशनों से प्राप्त किया गया।
नमूना चयन -
कुल 120 उत्तरदाताओं का चयन किया गया, जिसमें 60 पुरुष, 40 महिलाएँ और 20 युवा शामिल थे। इनसे प्राप्त प्रतिक्रियाओं के आधार पर निष्कर्ष निकाले गए।
डेटा विश्लेषण की विधि -
प्राप्त आँकड़ों का विश्लेषण सांख्यिकीय तकनीकों जैसे प्रतिशत, औसत, अनुपात, और तुलनात्मक विश्लेषण के माध्यम से किया गया।
शोध की परिकल्पना -
गोठानों ने ग्रामीण रोजगार के अवसरों में वृद्धि की है।
गोठानों के कारण पारिवारिक आय में वृद्धि हुई है।
गोठानों ने महिला एवं युवा सशक्तिकरण में योगदान दिया है।
गोठान आधारित रोजगार ने पलायन दर को कम किया है।
सीमाएँ -
अध्ययन का क्षेत्र सीमित जिलों तक ही सीमित था।
समय और संसाधनों की कमी के कारण विस्तृत तुलनात्मक अध्ययन संभव नहीं था।
पर्यवेक्षण -
सर्वेक्षण और साक्षात्कार के आधार पर प्राप्त प्रमुख अवलोकन निम्नलिखित हैं -
रोजगार अवसरों में वृद्धि - 85ः उत्तरदाताओं ने बताया कि गोठानों से गाँव में नए रोजगार के अवसर उत्पन्न हुए हैं। विशेषकर वर्मी कम्पोस्ट, पशुपालन, और खाद निर्माण में स्थानीय श्रमिकों को नियमित कार्य मिला है।
महिलाओं की भागीदारी - महिला स्व-सहायता समूहों ने गोठानों में सक्रिय भूमिका निभाई है। 65ः महिलाएँ वर्मी कम्पोस्ट निर्माण, दुग्ध उत्पाद, और हस्तशिल्प से जुड़ी हैं।
युवाओं का योगदान - 45ः ग्रामीण युवाओं ने बताया कि गोठान में उन्हें स्वरोजगार मिला है। कुछ युवाओं ने वर्मी खाद विक्रय, चारा उत्पादन, और बायोफ्यूल निर्माण में रोजगार पाया है।
आय में वृद्धि - 70ः परिवारों की मासिक आय में औसतन ₹2,000-₹5,000 की वृद्धि हुई है। इससे उनके जीवन स्तर में सुधार आया है।
स्थायी रोजगार - गोठानों से प्राप्त कार्य मौसमी न होकर स्थायी प्रकृति का है। वर्षभर उत्पादन और रखरखाव के कार्य चलते रहते हैं।
पलायन दर में कमी - गोठानों के निर्माण से ग्रामीण मजदूरों का शहरों की ओर पलायन घटा है। 60ः उत्तरदाताओं ने बताया कि अब वे गाँव में ही कार्यरत हैं।
सामाजिक प्रभाव - गोठानों ने न केवल आर्थिक बल्कि सामाजिक स्तर पर भी सामंजस्य और सामूहिक कार्य संस्कृति को बढ़ावा दिया है।
विश्लेषण -
अध्ययन के आधार पर स्पष्ट होता है कि गोठान योजना ने ग्रामीण क्षेत्रों की अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित किया है।
आर्थिक दृष्टि से - गोठानों ने रोजगार सृजन के माध्यम से परिवारों की नियमित आय सुनिश्चित की। पशुपालन और वर्मी कम्पोस्ट जैसी गतिविधियाँ ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ बन गईं।
सामाजिक दृष्टि से - महिलाओं की आर्थिक भागीदारी ने उनके आत्मविश्वास और निर्णय लेने की क्षमता को बढ़ाया। युवाओं ने स्थानीय स्तर पर स्वरोजगार अपनाकर पलायन को रोका।
पर्यावरणीय दृष्टि से - जैविक खाद और प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग से टिकाऊ विकास (ैनेजंपदंइसम क्मअमसवचउमदज) को प्रोत्साहन मिला।
राजनीतिक दृष्टि से - ग्राम पंचायतों की भूमिका सशक्त हुई है, जिससे स्थानीय शासन को मजबूती मिली है।
संपूर्ण विश्लेषण - यह इंगित करता है कि गोठान योजना ग्रामीण रोजगार वृद्धि की दिशा में एक प्रभावी मॉडल बन चुकी है।
निष्कर्ष -
अध्ययन से यह निष्कर्ष निकलता है कि गोठान योजना ने ग्रामीण जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाया है। इस योजना ने न केवल रोजगार के अवसर बढ़ाए हैं बल्कि पारिवारिक आय, सामाजिक एकता, महिला सशक्तिकरण और स्थानीय आत्मनिर्भरता को भी प्रोत्साहन दिया है। गोठान ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए स्थायी मॉडल सिद्ध हो रहे हैं, जिनसे ग्रामीण क्षेत्र में गरीबी उन्मूलन और आर्थिक स्थिरता की दिशा में ठोस कदम उठाए गए हैं।
सुझाव -
गोठानों में उत्पादन आधारित प्रशिक्षण कार्यक्रमों को बढ़ाया जाए।
युवाओं के लिए तकनीकी कौशल विकास केंद्र स्थापित किए जाएँ।
महिलाओं के लिए सूक्ष्म वित्त (डपबतवपिदंदबम) सुविधाएँ उपलब्ध कराई जाएँ।
गोठान उत्पादों के विपणन हेतु राज्य स्तर पर सहकारी मंच बनाए जाएँ।
सरकार द्वारा गोठानों के लिए नियमित निगरानी एवं मूल्यांकन प्रणाली विकसित की जाए।
नवाचार आधारित गतिविधियों (जैसे बायोफ्यूल, जैव उत्पाद) को प्रोत्साहित किया जाए।
संदर्भ -
छत्तीसगढ़ शासन, (2022), गोठान योजना - ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़, रायपुर - पंचायती राज विभाग।
आर्थिक सर्वेक्षण, छत्तीसगढ़, (2023), राज्य की ग्रामीण विकास नीतियाँ, रायपुर - योजना एवं आर्थिक विभाग।
मिश्रा, आर. के. (2021), ग्रामीण रोजगार और आत्मनिर्भरता का अध्ययन, दिल्ली - अर्थशास्त्र प्रकाशन।
सिंह, एम. एवं वर्मा, पी., (2020), गोठान और ग्रामीण विकास, बिलासपुर - ग्राम प्रकाशन।
Government of Chhattisgarh, (2024), Narva] Garva] Ghurva, Bari Programme Report, Raipur: Rural Development Department.

