Sahitya Samhita

Sahitya Samhita Journal ISSN 2454-2695

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समावेशी शिक्षा में निर्देशन परामर्श और नई प्रवृत्तियां

अचला मिश्र (शोध छात्रा )

रंजीत बहादुर सिंह (शोध छात्र),

डॉ नीरा सिंह (शोध निदेशक )

शिक्षा शास्त्र विभाग

आई..एस विश्वविद्यालय ,भोपाल

 

Abstract (सार)

समावेशी शिक्षा एक ऐसी व्यवस्था है जो बालकों में शारीरिक मानसिक, सामाजिक तथा अन्य अक्षमताओं के आधार पर भेदभाव ना करके उन्हें समान रूप से स्वीकार करती है। यह शिक्षा व्यवस्था भारतीय संविधान के अनुरूप कार्य करती है, जिसमें प्रत्येक बालक को शिक्षा का अधिकार प्राप्त है चाहे वह विशिष्ट हो या सामान्य, बिना किसी भेदभाव के एक साथ एक ही विद्यालय में सभी आवश्यक तकनीकों व सामग्रियों के साथ उसकी सीखने-सिखाने की जरूरत को पूरा करती है।

सभी छात्रों को समान अवसर प्रदान करना। अनेकता में एकता को बढ़ावा देना। जाति, लिंग, अक्षमता, चिकित्सा या अन्य आवश्यकताओं के बावजूद सभी छात्रों को शामिल करना। छात्रों को उनकी प्रतिभा, प्रदर्शन आदि के आधार पर वर्गीकृत नहीं करना।

जब अच्छी निर्देशन और अच्छी परामर्श दी जाती है तो सही तरीके से समावेशी शिक्षा का छात्रों के बीच में समावेश होता है इसके तहत सभी तरह के छात्र रुचि लेकर के ज्ञान और विज्ञान के क्षेत्र में एक साथ एक ही छत के नीचे आगे बढ़ते हैं अतः हम कर सकते हैं कि:-

निर्माणो के पावन युग में हम चरित्र निर्माण ना भूले “

     “ स्वार्थ साधना की आंधी में वसुधा का कल्याण ना भूले।“

.......

Introduction (परिचय)

समावेशी शिक्षा - समावेशी शिक्षा एक ऐसी व्यवस्था है जो बालकों में शारीरिक मानसिक, सामाजिक तथा अन्य अक्षमताओं के आधार पर भेदभाव ना करके उन्हें समान रूप से स्वीकार करती है। यह शिक्षा व्यवस्था भारतीय संविधान के अनुरूप कार्य करती है, जिसमें प्रत्येक बालक को शिक्षा का अधिकार प्राप्त है चाहे वह विशिष्ट हो या सामान्य, बिना किसी भेदभाव के एक साथ एक ही विद्यालय में सभी आवश्यक तकनीकों व सामग्रियों के साथ उसकी सीखने-सिखाने की जरूरत को पूरा करती है।

समावेशित शिक्षा का मुख्य उद्देश्य केवल विशिष्ट बालकों के लिए ही नहीं अपितु सभी बालकों को समान रूप से शिक्षा प्रदान करना है । समावेशी शिक्षा में विशिष्ट बालकों को सामाजिक ,जातिगत, आर्थिक वर्गीय, लैंगिक, शारीरिक एवं मानसिक दृष्टि से अलग ना देखकर उन्हें स्वतंत्र अधिगमकर्ता के रूप में देखा जाता है। समावेशी शिक्षा समाज के सभी बच्चों को शिक्षा की मुख्य धारा में जोड़ने पर बल देती है।


 

 यूनेस्को के शब्दों में "*समावेशी शिक्षा अर्जन के लिए अति संवेदनशील तथा सीमांत स्थित सभी अधिगमकर्ताओं की शिक्षाओं के अवरोधों को हटाने से संबंधित है।  यह एक प्रतिमानित उपागम है, जिसे सभी बालकों की शिक्षा में सफलता के लिए निर्मित किया गया है।  इसका सामान्य उद्देश्य कम से कम प्राथमिक शिक्षा से व्यक्ति के शिक्षा के अधिकार के सभी अपवर्जन (एक्सक्लूजन) को कम करना तथा निराकरण करना है।  इस प्रकार सभी के लिए प्राथमिक गुणात्मक शिक्षा तक पहुंच भागीदारी तथा सीखने में सफलता को संभव बनाना है*" 

समावेशी शिक्षा वर्तमान समाज की एक अपरिहार्य आवश्यकता बन गई है, जो व्यक्तिगत पारिवारिक एवं सामाजिक विकास की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है।

*समावेशी शिक्षा में निर्देशन* 

शिक्षा एवं निर्देशन का गहरा संबंध है।  शिक्षा के उद्देश्यों की प्राप्ति में निर्देशन विशेष सहायक होता है । बालक अपनी शिक्षा व्यवहार और जीवन के लक्ष्यों को निश्चित करने में असमर्थ होता है और निर्देशन की आवश्यकता का अनुभव करने लगता है। कुप्पू स्वामी के अनुसार-"निर्देशन की आवश्यकता सभी युगों में रही है पर आज इस देश( भारत) में जो दशाएं उत्पन्न हो रही हैं उन्होंने इस आवश्यकता को पर्याप्त रूप से बलवती बना दिया है"

*निर्देशन का अर्थ* 

निर्देशन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें किसी बालक को सलाह या सहायता दी जाती है।  निर्देशन का उद्देश्य बालक की समस्याओं का समाधान करना ही नहीं बल्कि उसके आधार पर किसी व्यक्ति को योग्य बनाना है कि वह अपनी समस्याओं का समाधान करने में स्वयं ही सक्षम हो जाए। व्यक्तिगत भिन्नता की अवधारणा को यदि हम माने तो यह स्पष्ट होता है कि बालक के विकास के लिए निर्देशन का होना अति आवश्यक है। यह निर्देशन व्यक्तिगत भिन्नताओं के आधार पर ही दिया जाता है।

हॉनरिंस के अनुसार :-"निर्देशन का अर्थ व्यक्ति को उसकी शक्तियों का ज्ञान इस प्रकार कराने से है कि वह अपनी क्षमताओं को पहचाने और उनके द्वारा समस्या का हल करे"

विद्यालयीन बालकों के मस्तिष्क अपरिपक्व होते हैं, साथ ही उनके पास जीवन के अनुभव का अभाव रहता है ,वह उचित -अनुचित को समझ नहीं पाते हैं, ऐसे समय पर निर्देशन द्वारा उनकी सहायता की जाती है।

स्किनर ने लिखा है -"आधुनिक शिक्षा में निर्देशन का विशिष्ट उद्देश्य है, प्रत्येक व्यक्ति को उसकी योग्यता रुचियां और अवसरों के अनुकूल चुनाव करने में सहायता देना है"

बालक स्वयं की व्यक्तिगत दैनिक समस्याओं को समझने और सुलझाने, समाधान ढूंढने में  असमर्थ होते हैं, ऐसी स्थिति में निर्देशन उनको सहायता प्रदान करता है।

रिस्क के शब्दों में -निर्देशन का उद्देश्य बालकों को उनकी व्यक्तिगत समस्याओं का समाधान करने में सहायता देना है।  उचित प्रकार के निर्देशन से छात्रों में अपनी स्वयं की समस्याओं को सुलझाने की क्षमता का विकास होता है।  निर्देशन का आधारभूत उद्देश्य आत्म निर्देशन है।

Ø परिकल्पनाएं:-

Ø इसके माध्यम से निःशक्त बच्चे जो मुख्य धारा में नहीं थे अथवा मुख्य धारा से हट गये हैं उन्हें शिक्षा द्वारा मुख्य धारा में लाना।

Ø इसके माध्यम से व्यक्तिगत शैक्षिक सहायता प्रदान कराना है, ताकि विकलांग बच्चे भी अपनी पूरी क्षमता प्राप्त कर सकें।

Ø एक स्वागतयोग्य और सुरक्षित स्कूल वातावरण बनाना।

Ø उद्देश्य:-

सभी छात्रों को समान अवसर प्रदान करना। अनेकता में एकता को बढ़ावा देना। जाति, लिंग, अक्षमता, चिकित्सा या अन्य आवश्यकताओं के बावजूद सभी छात्रों को शामिल करना। छात्रों को उनकी प्रतिभा, प्रदर्शन आदि के आधार पर वर्गीकृत नहीं करना।

Ø  विशिष्ट बालकों के लिए निर्देशन*

विशिष्ट बालकों का निर्देशन उनकी शिक्षा के लिए अत्यंत आवश्यक है , क्योंकि निर्देशन वह व्यवस्था है जिसके द्वारा शारीरिक व मानसिक रूप से विकलांग बच्चों की शिक्षा व प्रशिक्षण सही तरीके से हो सके क्योंकि सभी विशिष्ट बालकों की मानसिक योग्यता व क्षमता तथा शारीरिक क्रियाएं एक दूसरे से भिन्न होती हैं।  विशिष्ट बालक असामान्य क्रियाएं करते हैं और औसत बालक से भिन्न होते हैं । निर्देशन की सहायता से बाधित बालकों की समस्याओं की पहचान कर उन्हें सही तरीके से प्रशिक्षित किया जाता है। 

 विशिष्ट बालकों के निर्देशन का अर्थ- बालकों के लिए विशेष रूप से दिशा निर्देशन होता है जिससे वे सामान्य बालक के समान ही समाज का एक अंग बन सके और समाज की मुख्य धारा में सम्मिलित हो सके।  भारत में लगभग 5 करोड़ अक्षम बालक हैं जो किसी न किसी रूप से विकलांग है इसलिए ऐसे बालकों के लिए व्यापक निर्देशन और परामर्श की आवश्यकता होती है।

Ø  परामर्श का अर्थ*

परामर्श एक जटिल प्रकार का निर्देशन है जिसका प्रयोग किसी व्यक्ति की गंभीर समस्याओं से निपटने के लिए विशेष परिस्थितियों में किया जाता है, जिसमें एक विशेषज्ञ दूसरे व्यक्ति की व्यक्तिगत कठिनाइयों को हल करने में उचित सहायता देता है ,इससे व्यक्ति स्वयं निर्णय में सक्षम हो जाता है और अपनी समस्या और असंतोष को समझने का प्रयास करने लगता है।

v शार्ट रोम एवम ब्रेमर के अनुसार -"परामर्श स्व-समायोजन प्रक्रिया है, जिसके अंतर्गत उपबोध्य को स्वनिर्देशित स्वानुशासित तथा स्वयं के प्रति जिम्मेदारी वहन करने में मदद मिलती है"

परामर्श वैयक्तिक विभिन्नता के सिद्धांत पर कार्य करता है। बाधित बालकों की समावेशी शिक्षा में परामर्श एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है जो किसी निश्चित लक्ष्य एवं उद्देश्य से प्रारंभ होती है और उनके पुनर्स्थापित एवं पुनर्वासित होने पर समाप्त हो जाती है।

v कार्ल रोजर के अनुसार - परामर्श का मुख्य उद्देश्य व्यक्ति के व्यवहारों एवं अभिवृत्तियों में वांछित परिवर्तन लाना है।

निर्देशन के कार्य में परामर्श का स्थान महत्वपूर्ण है बिना परामर्श के निर्देशन संबंधी किसी कार्य का होना असंभव है।  परामर्श कार्य व्यक्ति में ऐसी अंतर्दृष्टि पैदा करना है कि वह स्वयं को पहचान कर अपनी समस्या का समाधान स्वयं करने में सक्षम हो जाए।

Ø  विशिष्ट बालकों के लिए परामर्श:-

विशिष्ट बालक सामान्य बालकों से भिन्न होते हैं। विशिष्ट बालक  मानसिक, शारीरिक एवं संवेगात्मक गुणों में सामान्य बालों से इतने भिन्न होते हैं कि उनको सामान्य बालकों के साथ समायोजन में करने में कठिनाई होती है।  विशिष्ट बालकों को उनकी विशिष्ट विशेषताओं के आधार पर परामर्श दिया जाता है जिससे वे अपनी समस्या के समाधान के लिए  स्व विवेक से कोई हल निकल सके।

रूथ स्ट्रेंग ने लिखा है -"परामर्श प्रक्रिया एक सम्मिलित  प्रयास है , इसमें छात्र का उत्तरदायित्व आत्मबोध करने, आगे बढ़ने की दिशा निश्चित करने तथा समस्या उत्पन्न होते ही उनके समाधान हेतु आत्मविश्वास पैदा करने का प्रयास करना है।  इस प्रक्रिया में परामर्शदाता की भूमिका छात्र को आवश्यकता अनुसार सहायता करने की है।

विशिष्ट बालकों की सबसे बड़ी समस्या समायोजन की है।  वह परंपरागत शिक्षण विधियां से लाभान्वित नहीं हो पाते हैं अतः ऐसे बालकों के लिए मनोवैज्ञानिक विधियां ही कारगर साबित होती है।  परामर्श अधिक वैज्ञानिक सलाह है जो प्रशिक्षित अनुभवी तथा विशेषज्ञ परामर्शदाता द्वारा अनेक उपकरण( बुद्धि परीक्षण रुचि परीक्षण बुद्धि लब्धि परीक्षण संचित अभिलेख आदि) का प्रयोग कर दी जाती है।

Ø  समावित समावेशी शिक्षा में निर्देशन एवं परामर्श*

निर्देशन एवं परामर्श सेवाएं संगठित क्रियाकलाप हैं, जो समावेशी बालको छात्रों की आवश्यकता की पूर्ति के लिए सहायता करती है।  समावेशित बालकों का अध्ययन करते समय निर्देशन एवं परामर्श देते समय यह आवश्यक है कि उसकी बुद्धि, अभिरुचियों योग्यताओं ,शैक्षणिक उपलब्धियां एवं  व्यक्तित्व संबंधी विकास की जानकारी होना जरूरी है।

शिक्षण प्रक्रिया में बालकों के सामने समस्याएं आती रहती हैं, जिससे वह घबराकर या भयभीत होकर इन प्रक्रिया( शिक्षा) को पूरा नहीं कर पाता है। इसी परिस्थिति में समस्या का समाधान करने में निर्देशन एवं परामर्श की अति आवश्यकता होती है।  विशिष्ट बालक विभिन्न समस्याओं आवश्यकताओं से पीड़ित रहते हैं वह अपने शिक्षा संबंधी निर्णय करने में असमर्थ होते हैं।

निर्देशन एवं परामर्श देने का प्रमुख उद्देश्य बालकों को शिक्षा को समान रूप से प्रदान करना है, जैसे बालकों की आधारभूत शारीरिक आवश्यकताओं की पूर्ति, स्वयं को समझने एवं दूसरे को स्वीकार करने, साथी समूह के साथ सहयोग स्थापित करना, शैक्षिक व्यवस्था में अनुमोदन एवं नियंत्रण के बीच संतुलन स्थापित करना, सफल उपलब्धि की प्राप्ति में एवं स्वतंत्रता प्राप्ति के अवसर आदि।

निर्देशन एवं परामर्श का प्रमुख उद्देश्य शैक्षिक कार्यक्रमों पर जोर देना एवं मजबूती प्रदान करना है।

1.        बालक को उसकी स्व-क्षमताओं से परिचित कराना:-

 बालक को उसकी क्षमताओं का एहसास करा कर उसके समग्र विकास के लिए निर्देशन एवं परामर्श बहुत जरूरी होता है। निर्देशन एवं परामर्श के माध्यम से बालक को पाठ्यक्रम के अतिरिक्त अन्य क्रियाओं को चुनने का अवसर मिलता है।  इसके माध्यम से बालक को अपनी क्षमताओं को पहचानने और उसके विकास के लिए भी मदद मिलती है।  परामर्श बालक को उसकी अधिगम परिस्थितियों में क्षमता का उपयोग करने के योग्य बनता है।

2.        बालक की समस्याओं के समाधान के लिए:-

विशिष्ट बालकों की शिक्षा समस्याएं भिन्न-भिन्न होती है, जिनके समाधान के लिए बालक को सहायता की जरूरत होती है और यह सहायता निर्देशन एवं परामर्श के माध्यम से शिक्षक द्वारा दी जाती है।  परामर्शदाता विशिष्ट बालकों को उनकी शैक्षणिक सामाजिक एवं व्यवसायिक समस्याओं के समाधान के लिए उचित निर्देशन एवं परामर्श प्रदान करता है।

3.        बालकों का मार्गदर्शन:-

शिक्षा के दौरान बालकों को मार्गदर्शन की बहुत आवश्यकता होती है । विशेष कर विशेष आवश्यकता वाले बालकों को , क्योंकि वह बिना समुचित परामर्श एवं निर्देशन के ना तो स्वयं निर्णय ले पाते हैं और ना ही कोई कार्य कर सकते हैं ,ऐसी स्थिति में परामर्शदाता बालकों की क्षमता और क्रियाओं का विश्लेषण कर मार्गदर्शन देते हैं ,जिससे बालक वातावरण से सामंजस्य स्थापित करने में समर्थ हो पाते हैं।

4.        बालकों में परस्पर सहयोग की क्षमता का विकास:-

शैक्षणिक गतिविधियों के दौरान निर्देशन एवं मार्गदर्शन का सबसे प्रमुख उद्देश्य बालको के मध्य सहयोग की भावनाओं को विकसित करना एवं उसे बनाए रखना होता है, जिसके लिए जरूरी है कि परामर्शदाता को बालकों की आवश्यकताओं का पूरी तरह से ज्ञान हो। बालकों को विद्यालयीन समायोजन के लिए निर्देशन व परामर्श जरूरी होता है।

5.         बालकों का सर्वांगीण विकास:- शिक्षा के दौरान बालकों को अनेक शारीरिक मानसिक सामाजिक एवं शैक्षिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है , इसके लिए जरूरी है कि उनके लिए समुचित निर्देशन और परामर्श मिले।  उचित निर्देशन एवं परामर्श से ही बालक का सर्वांगीण विकास संभव होता है।

Ø  परामर्श एवं निर्देशन में प्रधानाचार्य की भूमिका:-

विद्यालय प्रशासन में प्रधानाचार्य की भूमिका प्रमुख होती है।  प्रधानाचार्य एक निर्देशक, निरीक्षक, परीक्षक तथा एक अच्छा परामर्शदाता होता है। प्रधानाध्यापक के शैक्षणिक ज्ञान पर विद्यालय के शैक्षिक कार्यक्रम की उन्नति एवं सफलता निर्भर करती है। प्रधानाध्यापक  शिक्षण कार्यों को सुचारू रूप से चलने के लिए शिक्षकों को निर्देशित करता है तथा उत्तरदायित्व को पूरा करने के लिए परामर्श देता है। प्रधानाध्यापक विद्यालय में निर्देशक व परामर्शदाता के रूप में होते हैं।

v शैक्षिक कार्य हेतु निर्देशन एवं परामर्श:-

विद्यालय में प्रधानाचार्य शैक्षिक स्तर के सुधार के लिए शिक्षकों को निर्देशन एवं परामर्श देते हैं, इसके अलावा वह स्वयं भी शिक्षण कार्य करते हैं। जिससे वह सीधे बालकों के संपर्क में आते हैं और शिक्षण प्रक्रिया को बेहतर करते हुए बालकों की शिक्षक समस्या के लिए निर्देशन एवं परामर्श देते हैं।  प्रधानाचार्य समय-समय पर अन्य शिक्षकों को संगोष्ठी एवं कार्यशालाओं में भाग लेने के लिए प्रेरित करते हैं।

v पाठ्यक्रम एवं पाठ्य पुस्तकों के लिए परामर्श एवं निर्देशन - विद्यालय शिक्षा में ऐसे पाठ्यक्रम और पाठ्य पुस्तकों की आवश्यकता होती है जो बालकों के मानसिक विकास में सहयोग करें , साथ ही बालक के स्पष्ट चिंतन और स्वतंत्र निर्णय विश्लेषण के लिए प्रेरणादायक हों। इस कार्य में प्रधानाध्यापक की महत्वपूर्ण भूमिका है।  प्रधानाध्यापक बालकों की जरूरत के अनुसार पाठ्यक्रम के निर्धारण शिक्षकों के सहयोग से करता है और पाठ्य पुस्तकों के चयन का परामर्श देता है।

v अनुशासन संबंधी निर्देशन:- विद्यालय शिक्षा में अनुशासन का बहुत महत्व है और विद्यालय के अनुशासन को बनाए रखने में प्रधानाचार्य की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।  प्रधानाचार्य विद्यालय के शिक्षकों के सहयोग से परामर्श एवं निर्देशन के माध्यम से विद्यालय में अनुशासन स्थापित करते हैं।

v बालको को स्वास्थ्य संबंधी परामर्श :- विद्यालय में अध्यनरत बालकों का स्वास्थ्य का स्वस्थ रहना बहुत ही जरूरी है क्योंकि यह बालक के व्यवहार क्षमता और शैक्षणिक योग्यता को प्रभावित करता है । प्रधानाध्यापक नियमित रूप से बालकों के स्वास्थ्य संबंधी जानकारी लेकर उन्हें आवश्यक निर्देशन एवं परामर्श देते हैं।

v शिक्षक एवं छात्रों को निर्देशन एवं परामर्श :-

शिक्षक और छात्र विद्यालय की महत्वपूर्ण इकाई है और किसी भी स्कूल की सफलता इन इकाइयों पर ही निर्भर करती है । इन दोनों को बेहतर निर्देशन और परामर्श का कार्य प्राचार्य प्रधानाध्यापक का होता है। प्रधानाध्यापक शिक्षकों को परामर्श मार्गदर्शन देकर विद्यालय के संतुलित एवं सुचारु संचालन को सुनिश्चित करते हैं वहीं वे विद्यार्थियों को निर्देशन एवं परामर्श देकर उन्हें स्वअनुशासित एवं उत्साहित छात्र के रूप में तैयार करने में मदद करते हैं।

v पाठ्य सहगामी क्रिया के लिए निर्देशन एवं परामर्श:-

बालक के संपूर्ण विकास के लिए पाठ्यक्रम के साथ-साथ सहगामी क्रियाओं का महत्वपूर्ण स्थान है।  विद्यालय में समय-समय पर विभिन्न तरह के कार्यक्रमों का आयोजन कर बालकों को इसमें भाग लेने के लिए प्रेरित व उत्साहित किया जाता है। प्रधानाचार्य निर्देशन एवं परामर्श द्वारा विद्यालय में पाठ्य सहगामी क्रियाओं को पूर्ण करवाता है।

v मूल्यांकन के लिए निर्देशन:-

 शिक्षा में बालकों को निष्पक्ष व सही मूल्यांकनआवश्यक है । प्रधानाध्यापक परीक्षा के प्रश्न पत्रों का सही मूल्यांकन करने के साथ-साथ अन्य तरह के मूल्यांकन जैसे छात्रों के चरित्र नेतृत्व क्षमता सहयोग की भावना और आत्म नियंत्रण के गुणों के मूल्यांकन के लिए शिक्षकों को निर्देशन एवं परामर्श देते हैं।

v छात्रों को रोजगार के लिए परामर्श:- प्रधानाध्यापक सिर्फ पाठ्यक्रम ही नहीं बल्कि छात्रों को उच्च स्तर पर विषयों के चयन के साथ-साथ उनकी योग्यता एवं रुचि के अनुरूप रोजगार एवं व्यवसाय को चुनने के लिए समुचित निर्देशन एवं परामर्श देते हैं।

 

Ø परामर्श एवम निर्देशन की नई प्रवृत्तियां:-

ज्ञान और सूचना के तेजी से बदलते और बढ़ते इस युग में सामाजिक विज्ञान के क्षेत्र में भी क्रांतिकारी परिवर्तन देखा जा रहा है । इन बदलावों का प्रभाव शिक्षा की हर विधा पर पड़ा है । परामर्श और निर्देशन के लक्ष्य कार्यविधि और मूल्यांकन पद्धति में भी बदलाव देखा जा सकता है । आज निर्देशन और परामर्श केवल बालक के सांवेगिक सुधार का तरीका न होकर उसके सभी मनोवैज्ञानिक पहलुओं को संबोधित करता है। निर्देशन और परामर्श के उद्देश्यों में भी बदलाव देखा जा रहा है।  वर्तमान निर्देशन और परामर्श बालक की क्षमताओं के विकास के साथ-साथ उसकी व्यावसायिक जरूरत और स समाजीकरण को भी सुनिश्चित करने पर जोर देता है।



 आज निर्देशन और परामर्श की मूल्यांकन पद्धतियों में भी बदलाव देखा जा रहा है।  उसकी वैधता और सार्थकता पर ज्यादा ध्यान दिया जा रहा दिया जाता है।  निर्देशन और परामर्श की पद्धतियों और प्रक्रियाओं को ज्यादा विश्वसनीय बनाने के लिए शोधों और सर्वेक्षणों की मदद ली जा रही है एवं निष्कर्ष को ज्यादा से ज्यादा वस्तुनिष्ठ परीक्षण की  कसौटीयों पर कसा जा रहा है, साथ ही समस्या के अध्ययन से संबंधित पक्षों का दायरा भी बढा है। साथ ही परामर्श और निर्देशन को शिक्षक व बालक के बीच की प्रक्रिया तक सीमित न रखकर उसमें अभिभावक और मित्रों के सहयोग  की भूमिका तलाशी जा रही है , जिससे जिसके चलते निर्देशन एवं परामर्श को एक सामूहिक कार्य के रूप में प्रोत्साहित करने की प्रवृत्ति विकसित की जा रही है। निर्देशन और परामर्श में तकनीक की भी भूमिका बढ़ी है।

प्रस्तुत तस्वीर में हम देख सकते हैं कि 20% बच्चे सभी तरह के शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं, दूसरे तरफ आज भी 40% बच्चे को कोई सपोर्ट नहीं है और 40% ऐसे हैं जिन्हें समावेशी शिक्षा प्रदान की जा रही है।

दूसरी तस्वीर में आप देख सकते हैं कि ग्रामीण और शहरी परिपेक्ष में क्या स्थिति है दिन प्रतिदिन हमारे देश में समावेशी शिक्षा का सुधार होते जा रहा है और धीरे-धीरे हम विश्व शक्ति के रूप में आगे बढ़ते चले जा रहे हैं।

 


 

निष्कर्ष:-

समावेशी शिक्षा प्रणाली को सफल बनाने में मार्गदर्शन और परामर्श  महत्वपूर्ण भूमिका है । शिक्षकों को मार्गदर्शन और सहायता प्रदान करके विशिष्ट छात्रों को व्यक्तिगत सहायता प्रदान करके परिवार और समुदाय के साथ सहयोग करके और समावेशी नीतियों की वकालत करके सभी शिक्षार्थियों के लिए समान पहुंच भागीदारी और सफलता सुनिश्चित करने के लिए समावेशी शिक्षा को प्रभावी ढंग से लागू किया जा सकता है।

 कुछ पंक्तियां है इस संबंध में

एकता की बाँध बनाती, समावेशी शिक्षा है,

हर बच्चे को आगे बढ़ाती, यह शिक्षा है।

दिलों को जोड़ती, भावनाओं की सँगीता है,

अलगाव की दीवारें गिराती, सहयोग की प्रेरणा है।

विभिन्नताओं को गले लगाती, एकता का प्रतीक है,

खुशहाली की पथ प्रशस्त करती, राष्ट्र की शक्ति है।

 

Ø  सन्दर्भ सूची 

1.जायसवाल सीताराम( 2011) शिक्षा में निर्देशन एवं परामर्श अग्रवाल पब्लिकेशन आगरा 

2. भार्गव महेश(2015) विशिष्ट बालक शिक्षा एवं पुनर्वास , आगरा एचपी भार्गव ,बुक हाउस

3. शर्मा एस एन सोलंकी एवं एम के( 2011) निर्देशन एवं परामर्श आगरा: माधव प्रकाशन

4. मीनाक्षी शर्मा ,सक्सेना बीना (2016) समावेशित विद्यालयों का निर्माण ,आगरा, राखी प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड

5.तुली उमा( 2013 ) समावेशी शिक्षा एक वास्तविकता नई दिल्ली

6. गुप्ता महावीर प्रसाद एवं गुप्ता ममता (2012) शैक्षिक निर्देशन एवं परामर्श ,आगरा एचपी भार्गव बुक हाउस

7. ठाकुर यतींद्र -समावेशी शिक्षा आगरा अग्रवाल पब्लिकेशन

.निगम नीलम, निघोजकर मौसमी ,शर्मा सुषमा-  समावेशी विद्यालय का सृजन, भोपाल ठाकुर पब्लिशर्स।

9. कवि अनिल कुमार पंचोली(साहित्यपेडिया)