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Sahitya Samhita Journal ISSN 2454-2695

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आज देश - भर में मनायी गयी भारतीय संविधान के निर्माता भीमराव अंबेडकर की जयंती


पाठकों भीमराव अंबेडकर को डॉ॰ बाबासाहब अंबेडकर के नाम से भी जाना जाता है, वह एक लोकप्रिय विधिवेत्ता, राजनीतिज्ञ, अर्थशास्त्री और समाजसुधारक थे। उन्होंने दलित बौद्ध आन्दोलन को प्रेरित किया था तथा साथ ही अछूतों अथवा दलितों के लिए सामाजिक भेदभाव के विरुद्ध अभियान चलाया था।


साथ ही डाॅ भीमराव अंबेडकर ने श्रमिकों, महिलाओं तथा किसानों के अधिकारों का समर्थन भी किया था। ये ही स्वतंत्र भारत के प्रथम विधि एवं न्याय मन्त्री थे, यह भारतीय संविधान के जनक एवं भारत गणराज्य के निर्माताओं में से एक थे।




डॉ. भीमराव अंबेडकर का जन्म :- बाबासाहेब का जन्म 14 अप्रैल 1891 को  भारत के मध्य प्रदेश राज्य में स्थित महू नगर सैन्य छावनी में हुआ था। इनके पिता का नाम रामजी मालोजी सकपाल एवं माता का नाम भीमाबाई था । इनका परिवार मराठी मूल का था जो कि कबीर पंथ को माननेवाला था.


तथा इनके परिवार वाले  महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले में आंबडवे गाँव के निवासी थे। ये हिंदू महार जाति से संबंध रखते थे जो कि तब अछूत कही जाती थी एवं इसी कारण इन्हें सामाजिक और आर्थिक रूप से गहरा भेदभाव सहन करना पड़ता था।





भीमराव अंबेडकर की स्कूली शिक्षा :- इनके  पूर्वज एक लंबे वक्त  से ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में कार्यरत रहे थे तथा इनके पिता रामजी सकपाल, भारतीय सेना की महू छावनी में सेवारत थे और यहां काम करते हुये  ही वे सूबेदार के पद तक पहुँचे थे। उन्होंने मराठी और अंग्रेजी में औपचारिक शिक्षा प्राप्त की थी।


7 नवम्बर 1900 को रामजी सकपाल ने सातारा की गवर्न्मेण्ट हाइस्कूल में अपने बेटे भीमराव का नाम भिवा रामजी आंबडवेकर दर्ज कराया । आम्बेडकर का मूल उपनाम सकपाल की बजाय आंबडवेकर लिखवाया था, जो कि उनके आंबडवे गाँव से संबंधित था। क्योंकी कोकण प्रांत के लोग अपना उपनाम गाँव के नाम से रखते थे, अतः आम्बेडकर के आंबडवे गाँव से आंबडवेकर उपनाम स्कूल में दर्ज करवाया गया। बाद में एक देवरुखे ब्राह्मण शिक्षक कृष्णा केशव आंबेडकर जो उनसे विशेष स्नेह रखते थे, ने उनके नाम से 'आंबडवेकर' हटाकर अपना सरल 'आंबेडकर' उपनाम जोड़ दिया। तब से आज तक वे बाबासाहेब आम्बेडकर नाम से जाने जाते हैं।




भीमराव अंबेडकर का छुआछुत के विरूद्ध संघर्ष :- आम्बेडकर ने कहा था "छुआछूत गुलामी से भी बदतर है।आम्बेडकर बड़ौदा के रियासत द्वारा शिक्षित थे, अतः उनकी सेवा करने के लिए बाध्य थे। उन्हें महाराजा गायकवाड़ का सैन्य सचिव नियुक्त किया गया, परंतु जातिगत भेदभाव के कारण कुछ ही समय में उन्हें यह नौकरी छोड़नी पड गयी। उन्होंने इस का वर्णन अपनी आत्मकथा, वेटिंग फॉर अ वीजा में भी किया है।


आम्बेडकर ने दलितों तथा अन्य धार्मिक समुदायों के लिये पृथक निर्वाचिका एवं आरक्षण देने की वकालत करी।


उनके द्धारा दिए गए दलित वर्ग के एक सम्मेलन के दौरान  भाषण ने कोल्हापुर राज्य के उस समय के स्थानीय शासक शाहू चतुर्थ को बहुत प्रभावित किया, जिनका आम्बेडकर के साथ भोजन करना रूढ़िवादी समाज मे हलचल मचा गया।


बॉम्बे उच्च न्यायालय में विधि का अभ्यास करते हुए, उन्होंने अछूतों की शिक्षा को बढ़ावा देने तथा उन्हें ऊपर उठाने के कठोर प्रयास किये। उनका पहला संगठित प्रयास केंद्रीय संस्थान बहिष्कृत हितकारिणी सभा की स्थापना था ।





फिर सन् 1930 में, आम्बेडकर ने तीन महीने की तैयारी के पश्चात कालाराम मन्दिर सत्याग्रह आरम्भ किया। कालाराम मन्दिर आंदोलन में लगभग 15,000 स्वयंसेवक इकट्ठे हुए, जिससे नासिक की सबसे बड़ी प्रक्रियाएं हुईं थी।



अंबेडकर का राजनीति जीवन  :- बाबासाहेब का राजनीतिक कैरियर सन् 1926 से 1956 तक के मध्य रहा इस दौरान वो राजनीतिक क्षेत्र में विभिन्न पदों पर रहे। दिसंबर 1926 में,  उन्हें बॉम्बे विधान परिषद के सदस्य के रूप में बॉम्बे के गवर्नर द्धारा नामित किया गया। वे 1936 तक बॉम्बे लेजिस्लेटिव के काउंसिल सदस्य थे।




आम्बेडकर मुम्बई में बस गये, वहाँ पर उन्होंने एक तीन मंजिला बडे़ घर 'राजगृह' का निर्माण करवाया, जिसमें उनके निजी पुस्तकालय में 50,000 से अधिक पुस्तकें थीं, उस वक्त यह दुनिया का सबसे बड़ा निजी पुस्तकालय था। 




1936 में, आम्बेडकर ने स्वतंत्र लेबर पार्टी की स्थापना की, जो कि 1937 में केन्द्रीय विधान सभा चुनावों मे 13 सीटें जीती। फिर उसके पश्चात वर्ष 1942 से 1946 के मध्य, आंबेडकर ने रक्षा सलाहकार समिति तथा वाइसराय की कार्यकारी परिषद में श्रम मंत्री के रूप में सेवारत रहे।




सन् 1952 में आम्बेडकर राज्य सभा के सदस्य बन गए एवं 30 सितंबर 1956 को, आम्बेडकर ने "अनुसूचित जाति महासंघ" को खारिज करके "रिपब्लिकन पार्टी ऑफ़ इंडिया" की स्थापना करने की घोषणा भी करी थी।



साथ ही डॉ. भीमराव दो बार भारतीय संसद के ऊपरी सदन राज्य सभा में महाराष्ट्र का प्रतिनिधित्व करने वाले भारत की संसद के सदस्य बने थे। राज्यसभा सदस्य के रूप में उनका पहला कार्यकाल 3 अप्रैल 1952 से 2 अप्रैल 1956 के बीच था ।



संविधान निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका :- 29 अगस्त 1947 को, आम्बेडकर को स्वतंत्र भारत के नए संविधान की रचना के लिए बनी संविधान की मसौदा समिति के अध्यक्ष पद पर नियुक्त किया गया था। आम्बेडकर द्वारा तैयार किए गए संविधान के पाठ में व्यक्तिगत नागरिकों के लिए नागरिक स्वतंत्रता की एक विस्तृत श्रृंखला के लिए संवैधानिक गारंटी और सुरक्षा प्रदान की गई है, जिसमें धर्म की आजादी, छुआछूत को खत्म करना, और भेदभाव के सभी रूपों का उल्लंघन करना शामिल है। आम्बेडकर ने महिलाओं के लिए व्यापक आर्थिक और सामाजिक अधिकारों के लिए तर्क दिया। संविधान सभा द्वारा दिंनाक 26 नवंबर 1949 को संविधान अपनाया गया था। अपने काम को पूरा करने के बाद, बोलते हुए, 


आम्बेडकर ने कहा : में महसूस करता हूं कि संविधान, साध्य  है, यह लचीला है पर साथ ही यह इतना मज़बूत भी है कि देश को शांति और युद्ध दोनों के समय जोड़ कर रख सके। वास्तव में, मैं कह सकता हूँ कि अगर कभी कुछ गलत हुआ तो इसका कारण यह नही होगा कि हमारा संविधान खराब था बल्कि इसका उपयोग करने वाला मनुष्य अधम था।



बाबासाहेब का दूसरा विवाह :- आम्बेडकर की पहली पत्नी रमाबाई का लंबी बीमारी के पश्चात 1935 में निधन हो गया। लम्बी बीमारी से पीड़ित होने से वह उपचार के लिए मुम्बई गए, एवं इसके पश्चात वहाँ डॉक्टर शारदा कबीर से मिले, जिनके साथ उन्होंने 15  अप्रैल 1948 को नई दिल्ली में अपने घर पर विवाह कर लिया था।




बौद्ध धर्म को अपनाना :- सन् 1950 के दशक में भीमराव आम्बेडकर बौद्ध धर्म के प्रति आकर्षित हुए तथा बौद्ध भिक्षुओं एवं विद्वानों के एक सम्मेलन में भाग लेने के लिए श्रीलंका गये। 1955 में उन्होंने 'भारतीय बौद्ध महासभा' यानी 'बुद्धिस्ट सोसाइटी ऑफ इंडिया' की स्थापना करी ।


फिर नागपुर शहर में सन् 14 अक्टूबर 1956 को नागपुर शहर में डॉ॰ भीमराव आम्बेडकर ने खुद तथा उनके समर्थकों के लिए एक औपचारिक सार्वजनिक धर्मांतरण समारोह का आयोजन किया। इसमें सर्वप्रथम डॉ॰ आम्बेडकर ने अपनी पत्नी सविता एवं कुछ सहयोगियों के साथ भिक्षु महास्थवीर चंद्रमणी द्वारा पारंपरिक तरीके से त्रिरत्न एवं पंचशील को अपनाते हुये बौद्ध धर्म स्वीकार किया।


फिर इसके पश्चात उन्होंने अपने 5,00,000 अनुयायियो को त्रिरत्न, पंचशील तथा 22 प्रतिज्ञाएँ देते हुए नवयान बौद्ध धर्म में परिवर्तन करवाया ।





बाबासाहेब का निधन :-  सन् 1948 से ही आम्बेडकर मधुमेह से काफी पीड़ित थे। 1954 में भी वो बहुत बीमार रहे इस दौरान वो कमजोर होती दृष्टि से ग्रस्त थे। 


1955 के  समय के दौरान किये गये लगातार कार्यो ने उन्हें तोड़ कर रख दिया।  एक दिन अपनी अंतिम पांडुलिपि भगवान बुद्ध और उनका धम्म को पूरा करने के तीन दिन के  पश्चात 6 दिसम्बर 1956 को आम्बेडकर का महापरिनिर्वाण नींद में ही दिल्ली में उनके घर में हो गया।