Sahitya Samhita

Sahitya Samhita Journal ISSN 2454-2695

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बृहस्पति वार व्रत कथा, विधि एवं उसका महत्व


पाठकों बृहस्पति वार अथवा वीरवार को भगवान बृहस्पति की पूजा करने का विशेष विधान है.


शास्त्रों के अनुसार बृहस्पति देवता को बुद्धि एवं शिक्षा का देवता माना जाता है, गुरूवार को बृहस्पति देव की पूजा करने से हमें धन, विद्या, पुत्र तथा मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है, इसके साथ - साथ परिवार में सुख एवं शांति भी बनी रहती है, बृहस्पति वार का व्रत जल्दी विवाह करने हेतु भी किया जाता है।




बृहस्पति वार का व्रत करने की विधि :- हमें बृहस्पति वार की पूजा करते समय कुछ विशेष बातों का ध्यान रखना चाहिए, जिससे कि व्रत पूजा विधि - विधान के अनुसार हो सके.



व्रत वाले दिन प्रात: काल उठ कर के हमें बृहस्पति देव का प्रेम पूर्वक पूजन करना चाहिए.


 बृहस्पति देव के पूजन के लिए हम पीले फूल, पीली वस्तुऍं, चने की दाल, पीली मिठाई, पीले चावल आदि का भोग लगाकर करते है.


इस व्रत में हमें केले के वृक्ष का पूजन करना चाहिए। कथा एवं पूजन के समय मन, कर्म एवं वचन से पूर्ण रूप से शुद्घ होकर मनोकामना को पूर्ण करने के लिये हमें बृहस्पतिदेव से प्रार्थना करनी चाहिए. 


दिन में एक समय ही भोजन करना चाहिए, नमक न खा‌एं तथा जो भोजन  है वो चने की दाल आदि का करें, पीले वस्त्र पहनें, पीले फलों का प्रयोग करें.  पीले चंदन से पूजा करें एवं उस पूजन के पश्चात हमें भगवान बृहस्पति की भी कथा सुननी चाहिये ।






बृहस्पति वार व्रत कथा :- बहुत प्राचीन समय की बात है. एक राज्य में एक बड़े प्रतापी एवं दानी राजा राज्य करते था. वह प्रत्येक गुरूवार को व्रत रखते तथा भूखों और गरीबों को दान देकर पुण्य प्राप्त करते थे लेकिन यह बात उसकी रानी को अच्छी नहीं लगती थी.


वह न तो व्रत करती थी एवं न ही किसी को कभी दान दिया करती थी साथ ही राजा को भी ऐसा करने से मना करती थी.


एक बार राजा शिकार खेलने को गए  और वे वन में काफी अंदर तक चले गए.


रानी और दासी घर पर ही रह गई थी. उसी समय गुरु वृहस्पतिदेव साधु का रूप धारण कर राजा के दरवाजे पर भिक्षा मांगने को आए.


उन साधु ने जब रानी से भिक्षा मांगी तो उसने कहा, हे साधु महाराज, मैं इस दान - पुण्य से तंग आ गई हूंँ. आप कोई ऐसा उपाय बताएं, जिससे कि यह  सारा धन नष्ट हो जाए और मैं आराम से रह पाऊं.


तब बृहस्पतिदेव ने कहा, हे देवी, तुम बड़ी विचित्र हो, संतान एवं धन से भी कभी कोई दुखी होता है क्या. 

अगर धन अधिक मात्रा में है तो इसे शुभ कार्यों में लगाना चाहिए, 


कुवांरी कन्याओं का विवाह करवाएं, विद्यालय तथा बाग़ - बगीचे का निर्माण कराएं, जिससे आपके दोनों लोक सुधर जाएं. 


लेकिन साधु की इन सब बातों से रानी को खुशी नहीं हुई. वह बोली मुझे ऐसे धन की आवश्यकता नहीं, जिसे मैं दान दूं तथा जिसे संभालने में ही मेरा संपूर्ण वक्त नष्ट हो जाए.


तब साधु  बोले - यदि आपकी ऐसी ही इच्छा है तो मैं जैसा तुम्हें कहता हूं वैसा ही करना. बृहस्पतिवार के दिन अपने घर को गोबर से लीपना, अपने केशों को पीली मिटटी से धोना, केशों को धोते समय स्नान करना, राजा को बोलना वह हजामत बनाए,  मांस मदिरा का सेवन करना, कपड़ा धोबी के यहां धुलने डालना. इस तरह सात बृहस्पतिवार करने से तुम्हारा समस्त धन नष्ट हो जाएगा. यह बताकर साधु रुपी बृहस्पतिदेव अंतर्ध्यान हो गए.


साधु के बताये अनुसार रानी ने केवल तीन बृहस्पतिवार ही किया था कि उसकी समस्त धन संपत्ति नष्ट हो गई. भोजन तक के लिए राजा का परिवार तरसने लगा.


तब एक दिन परेशान होकर राजा ने रानी से कहा - हे रानी, तुम यहीं रहो, मैं दूसरे देश को जाता हूं, क्योंकि यहां पर सभी लोग मुझे जानते हैं. इसलिए मैं कोई छोटा कार्य नहीं कर पाऊंगा. ऐसा बोलकर राजा परदेश को चले गये,


 उधर  वो जंगल से लकड़ी काटकर लाते एवं शहर में बेचते. इस प्रकार वे अपना जीवन व्यतीत करने लगे. इधर  राजा के परदेश जाने से रानी और दासी दुखी रहने लगी.


एक बार ऐसा समय आया जब रानी और दासी को सात दिनों तक बिना भोजन नहीं मिला,


तब रानी ने अपनी दासी से कहा - हे दासी, पास ही के नगर में मेरी बहन रहती है. वह बड़ी धनवान है. तू उसके पास जा और वहाँ से कुछ ले आ जिससे थोड़ा बहुत गुजर बसर हो जाए.


दासी रानी के बहन के पास गई तो उस दिन बृहस्पतिवार का दिन था तब रानी की बहन उस वक्त बृहस्पतिवार की व्रत कथा सुना रही थी.  वहाँ दासी ने रानी की बहन को अपनी रानी का सन्देश दिया, लेकिन रानी की बड़ी बहन ने कोई उत्तर नहीं दिया. 


जब दासी को रानी की बहन से कोई उत्तर नहीं मिला तो वह बहुत दुखी हुई एवं उसे क्रोध भी आया फिर दासी ने वापस आकर रानी को सारी बात बता दी. यह सुनकर रानी ने अपने भाग्य को कोसा. वहाँ रानी की बहन ने सोचा कि मेरी बहन की दासी आई थी, परन्तु मैं उससे नहीं बोली, इससे वह बहुत दुखी हुई होगी. कथा एवं पूजन पूर्ण कर वह अपनी बहन के घर आई एवं कहने लगी - हे बहन, मैं बृहस्पतिवार का व्रत कर रही थी तब तुम्हारी दासी मेरे घर आयी लेकिन जब तक कथा होती, तब तक न तो उठते हैं एवं न ही बोलते हैं, इस कारण में ना बोली. बताओ दासी क्यों आई थी.







तब रानी ने बताया - बहन अब तुमसे क्या छिपाना, हमारे घर में खाने तक को अनाज नहीं था. ऐसा कहते हुए रानी की आंँखे भर आई. उसने दासी समेत खुद के पिछले सात दिनों से भूखे रहने तक की बात अपनी बहन को विस्तारपूर्वक बतायी. रानी की बहन बोली - देखो बहन, भगवान बृहस्पतिदेव सबकी मनोकामना को पूर्ण करने वाले हैं. देखो, शायद तुम्हारे घर में अनाज रखा हुआ हो. पहले तो रानी को विश्वास नहीं हुआ पर बहन के  विनती करने पर उसने अपनी दासी को अन्दर भेजा तो उसे सच  में अनाज से भरा एक घड़ा मिल गया. 


यह देखकर दासी को बड़ी हैरानी हुई तब  दासी रानी से बोली - हे रानी, जब हमको भोजन नहीं मिलता है तो हम भी व्रत ही तो करते हैं, इसलिए क्यों न इनसे व्रत एवं कथा की विधि पूछ ली जाए, जिससे की हम भी व्रत कर पाए.


तब रानी ने अपनी बहन से बृहस्पतिवार व्रत के बारे में पूछा.

उनकी बहन ने बताया कि बृहस्पति वार के व्रत में चने की दाल एवं मुनक्का से विष्णु भगवान का केले की जड़ में पूजन करें साथ ही दीपक जलाएं, फिर व्रत कथा सुनें एवं पीला भोजन करें.

इससे भगवान बृहस्पतिदेव प्रसन्न होते हैं. फिर व्रत और पूजन विधि बतलाकर रानी की बहन अपने घर को लौट गई.


तभी सातवें रोज बाद में जब बृहस्पति वार आया तो रानी एवं दासी ने निश्चयनुसार व्रत रखा.  साथ ही घुड़साल में जाकर चना एवं गुड़ बीन लाई. फिर उसकी दाल से केले की जड़ तथा विष्णु भगवान का पूजन किया.


परंतु अब पीला भोजन कहां से आए ये सोचकर वे दोनों बहुत दुखी थे. पर क्योंकि उन्होंने व्रत रखा था इस कारण गुरुदेव उनपर प्रसन्न थे.


इसलिए वे एक साधारण व्यक्ति का रूप धारण कर दो थालों में सुन्दर पीला भोजन दासी को दे गए. भोजन पाकर दासी प्रसन्न हुई एवं फिर रानी के साथ मिलकर भोजन ग्रहण किया.


उसके बाद वे प्रत्येक बृहस्पति वार को व्रत एवं पूजन करने लगी. बृहस्पति भगवान की कृपा से उनके पास फिर से धन-संपत्ति हो गयी.  परन्तु रानी फिर से पहले की तरह ही आलस्य करने लगी.


तब दासी बोली देखो रानी, तुम पहले भी इस प्रकार से आलस्य करती थी.


आपको धन रखने में कष्ट होता था, इसी कारण सभी धन नष्ट हो गया एवं अब जब कि भगवान गुरुदेव की कृपा से धन प्राप्त हुआ है तो आपको फिर से आलस्य होता है. बड़ी मुसीबतों के पश्चात तो हमने यह धन पाया है, इसलिए हमें दान-पुण्य करना चाहिए. भूखे मनुष्यों को भोजन कराना चाहिए, तथा इस धन को शुभ कार्यों हेतु खर्च करना चाहिए, जिससे आपके कुल का यश बढ़ेगा, स्वर्ग की प्राप्ति होगी एवं पित्तर भी प्रसन्न होंगे.




दासी की बात मानकर रानी अपना धन शुभ कार्यों में खर्च करने लगी, जिससे पूरे नगर में उसका यश फैलने लगा.


बृहस्पति वार का बृहस्पति भगवान का व्रत रखने से उनके घर में सदैव सुख - संपत्ति की बहार रहने लगी।






बृहस्पति वार की आरती :- 

 जय बृहस्पति देवा,

ऊँ जय वृहस्पति देवा ।

छिन छिन भोग लगा‌ऊँ,

कदली फल मेवा ॥


ऊँ जय वृहस्पति देवा,

जय वृहस्पति देवा ॥


तुम पूरण परमात्मा,

तुम अन्तर्यामी ।

जगतपिता जगदीश्वर,

तुम सबके स्वामी ॥


ऊँ जय वृहस्पति देवा,

जय वृहस्पति देवा ॥


चरणामृत निज निर्मल,

सब पातक हर्ता ।

सकल मनोरथ दायक,

कृपा करो भर्ता ॥


ऊँ जय वृहस्पति देवा,

जय वृहस्पति देवा ॥


तन, मन, धन अर्पण कर,

जो जन शरण पड़े ।

प्रभु प्रकट तब होकर,

आकर द्घार खड़े ॥


ऊँ जय वृहस्पति देवा,

जय वृहस्पति देवा ॥


दीनदयाल दयानिधि,

भक्तन हितकारी ।

पाप दोष सब हर्ता,

भव बंधन हारी ॥


ऊँ जय वृहस्पति देवा,

जय वृहस्पति देवा ॥


सकल मनोरथ दायक,

सब संशय हारो ।

विषय विकार मिटा‌ओ,

संतन सुखकारी ॥


ऊँ जय वृहस्पति देवा,

जय वृहस्पति देवा ॥


जो को‌ई आरती तेरी,

प्रेम सहित गावे ।

जेठानन्द आनन्दकर,

सो निश्चय पावे ॥


ऊँ जय वृहस्पति देवा,

जय वृहस्पति देवा ॥


विष्णु भगवान की जय ।

बृहस्पतिदेव भगवान की जय ॥