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Sahitya Samhita Journal ISSN 2454-2695

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नहीं रहे मशहूर भारतीय कथक नर्तक सम्राट पंडित बिरजू महाराज


नृत्य एवं विशेषकर कथक के क्षेत्र में बिरजू  महाराज का अतुलनीय योगदान रहा, उनके घुंघरूओं की थाप और संगीत की लय और ताल आज भी जनमानस में अपनी छाप छोड़े हुए है, परंतु बीते सोमवार वह अपने चाहने वालो तथा भारतीय संगीत प्रेमियों एवं कथक जैसे अद्भुत नृत्य के अपने समस्त शिष्यों को हमेशा के लिए अलविदा कहकर इस दुनिया से चल बसे, परंतु आज हम इस लेख के माध्यम से उनके संघर्षमय जीवन तथा भारतीय संगीत एवं विशेषकर कथक के क्षेत्र में उनके विशेष योगदान को जानेंगे ।


जन्म स्थान :-

बिरजू महाराज का जन्म कत्थक नृत्य के लिये प्रसिद्ध जगन्नाथ महाराज के यहा़ँ हुआ था, जिन्हें लखनऊ घराने के अच्छन महाराज के नाम से भी जाना जाता था। ये रायगढ़ रजवाड़े में वहाँ के दरबारी नर्तक हुआ करते थे। इनका नाम पहले दुखहरण रखा गया था, क्योंकि ये जिस अस्पताल में पैदा हुए थे, उस दिन वहाँ इनके अतिरिक्त बाकी सब कन्याओं का ही जन्म हुआ था, जिसके कारण उनका नाम बृजमोहन रख दिया गया। यही नाम रुपान्तरित होकर  'बिरजू' और आगे चलकर 'बिरजू महाराज' हो गया। इन्होंने अपने चाचाओ लच्छू महाराज एवं शंभु महाराज से नृत्य कला का प्रशिक्षण प्राप्त किया तथा अपने जीवन का प्रथम गायन इन्होंने सात वर्ष की आयु में दिया। 20 मई, 1947 को जब ये मात्र 9 वर्ष के ही थे, इनके पिता का स्वर्गवास हो गया। परिश्रम के कुछ वर्षोपरान्त इनका परिवार दिल्ली में रहने लगा।




जीवन को एक नया मोड़ देने वाली घटना :-

वर्ष 1944 की बात है जब एक छह साल के बच्चे को पिता के साथ रामपुर नवाब के दरबार में नाचने जाना था। बच्चे को सवेरे जगाकर मां काजल लगा रही थी कंघा कर रही थी एवं साफा बांध रही थी परंतु इन सबके बावजूद बच्चे को नींद से उठना नागवार प्रतीत हो रहा था।वह बालक गुस्से में पैर पटकते हुए बोला, यह नवाब मर क्यों नहीं जाता। उस बालक की इतनी कम आयु के इस छोटे से गुस्से ने उस बच्चे की पूरी दुनिया ही बदल दी, बच्चे ने नवाब के दरबार में जाने से इनकार कर दिया था। जिससे वे नवाब नाराज हो गए उसके बाद उस बच्चे के बाबूजी ने नौकरी छोड़ दी और तभी से उस बच्चे ने गुस्साना भी छोड़ दिया था। और एक वक्त ऐसा आया जब दोनों ने घर भी छोड़ दिया था।और यही से शुरू हुआ उस बच्चे का कथक सफर, जिसमें हर कदम - कदम पर लय, पड़ाव पर ताल और हर आंख में बस नाद के तमाशे थे ।और फिर ऐसी स्थिति में जब पता भी नहीं था कि मौत क्या होती है तभी पिताजी चल बसे। पैसे की दिक्कत शुरू हो गई थी ये तो कानपुर शहर आ गए थे|। और थोड़ा - थोड़ा करके कथक की ट्यूशन करने लगे और फिर यूं ही इनकी गाड़ी चल निकली। परंतु इन दिनों ये अच्छन महाराज के बेटे शंभू और लच्छू महाराज के भतीजे के नाम से ही जाने जाते थे।




कुछ समय पश्चात लखनऊ में एक महफिल सजी। और खुद उस्ताद बिस्मिल्लाह खान शहनाई बजा कर उठ चुके थे। मंच से घोषणा हुई कि अब अच्छन महाराज का बेटा बिरजू प्रस्तुति देगा। और वो बालक बिरजू कुछ ऐसा नाचा.. ऐसा नाचा कि उस्ताद बिस्मिल्लाह खान दाद देना भूल गए तथा रोने लग गए।और शंभू महाराज के पास आए बड़े प्रेम से बोले नाचता तो तू भी है और तेरा भाई अच्छन भी नाचता था...लेकिन तेरा भतीजा क्या नाचता है। उसके बाद फिर उन्होंने बिरजू के सिर पर हाथ रखकर दुआ दी और बोले जीते रहो बेटा नाचते रहो।और यही बालक आगे चलकर सुप्रसिद्ध भारतीय नृत्यकार पंडित बिरजू महाराज के नाम से लोगों में प्रसिद्ध हुए ।


संगीत की दुनिया में योगदान :-बिरजू महाराज ने मात्र 13 साल की आयु में ही नई दिल्ली के संगीत भारती में नृत्य की शिक्षा देना आरम्भ कर दिया था। इसके पश्चाण उन्होंने दिल्ली में  भारतीय कला केन्द्र में सिखाना प्रारंभ कर दिया था। कुछ समय पश्चात इन्होंने कत्थक केन्द्र (संगीत नाटक अकादमी की एक इकाई) में शिक्षा देने का कार्य आरम्भ कर दिया। यहां वे विभाग के अध्यक्ष तथा निदेशक भी रहे। उसके बाद  इन्होंने वहीं से 1998 में सेवानिवृत्ति पायी। तथा इसके पश्चात कलाश्रम नाम से दिल्ली में  एक नाट्य विद्यालय की स्थापना करी।

भारतीय सिनेमा का सफर :-

पंडित बिरजू महाराज के नृत्य और संगीत का जादू सिनेमा में भी चला दुनियाभर में मशहूर रहे कथक नृत्यकार पंडित बिरजू महाराज ने बेहद चुनिंदा हिंदी फिल्मों में गानों की कोरियोग्राफी की थी. लोगों की जबान पर मशहूर ऐसी फिल्मों के गानों में सुपरहिट फिल्म 'गदर' का भी नाम शुमार रहा. साल 2001 में रिलीज हुई और अनिल शर्मा द्वारा निर्देशित 'गदर' के ठुमरी गीत 'आन मिलो सजना' की कोरियोग्राफी पंडित बिरजू महाराज ने ही करी थी जिसे बेगम परवीना सुल्तान और अजय चक्रवर्ती ने मिलकर गाया था. इस फिल्म के गानों की कोरियोग्राफी से जुड़ीं यादों को लेकर अनिल शर्मा ने बताया था कि में पूरी शिद्दत से चाहता था कि इस क्लासिकल संगीत को पंडित बिरजू महाराज ही कोरियोग्राफ करें तथा अपनी नजाकत से इस गाने को एक बेहद अलग पहचान दें.साथ ही उन्होनें बताया कि उनके निर्माता पिता के. सी. शर्मा से पंडित बिरजू महाराज के बहुत दशकों तक अच्छे संबंध थे और यही कारण था कि मेरी पहले भी उनसे बातें और मुलाकातें हुआ करती थीं. पंडितजी को शास्त्रीय गायन का भी शौक था. मुझे इसका आनंद उठाने का मौका कई बार मिला. उन्हें हारमोनियम और अन्य वाद्यों को बजाते देखने का लुत्फ भी मैंने कई बार उठाया था. निर्देशक ने आगे यह भी बताया कि फिल्म के ठुमरी गीत आन मिलो सजना के गीत को कोरियोग्राफ करने का ऑफर लेकर मैं पंडित बिरजू महराज से मिलने उनके दिल्ली स्थित घर पर गया था. पहलें उन्होंने 'गदर' की पूरी पटकथा सुनी फिर पूरा गाना भी सुना. वे दोनों ही उन्हें बेहद पसंद आए और उन्होंने इस गाने का नृत्य निर्देशन करने ने लिए फौरन हामी भर दी तथा मुझे उन्हें मनाने की बिल्कुल भी जरूरत नहीं पड़ी थी.इसके साथ ही बिरजू महाराज ने सत्यजीत राय की फिल्म शतरंज के खिलाड़ी की संगीत रचना भी की थी, तथा उसके दो गानों पर नृत्य करने के लिये गायन भी किया। इसके अलावा वर्ष 2002 में बनी हिन्दी फ़िल्म देवदास में एक गाने काहे छेड़ छेड़ मोहे का नृत्य संयोजन भी किया था। इसके अलावा बिरजू महाराज ने कई अन्य हिन्दी फ़िल्मों जैसे डेढ़ इश्किया, उमराव जान तथा संजय लीला भन्साली निर्देशित बाजी राव मस्तानी में भी कत्थक नृत्य के संयोजन भी किये थे।

बिरजू महराज को मिलने वाले पुरस्कार तथा उपाधि :-

नाचता हुआ बिरजू कब बिरजू महाराज हो गए, उन्हें भी नहीं पता। नृत्य के आचार्यों ने तो बस यही कहा कि बिरजू महाराज की कला में पिता अच्छन महाराज का संतुलन, चाचा शंभू महाराज का जोश और दूसरे चाचा लच्छू महाराज के लास्य की त्रिवेणी बहती है। और इन सब के कारण ही उन्हें उनके जीवन काल में बहुत सारे पुरस्कारों तथा उपाधियों का सम्मान प्राप्त हुआ. बिरजू महाराज को अपने क्षेत्र में आरम्भ से ही काफ़ी प्रशंसा एवं सम्मान मिले, जिनमें 1986 में पद्म विभूषण, संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार तथा कालिदास सम्मान प्रमुख हैं। 2016 में हिन्दी फ़िल्म बाजीराव मस्तानी में "मोहे रंग दो लाल गाने पर नृत्य-निर्देशन के लिये फ़िल्म फ़ेयर पुरस्कार मिला था। 2002 में लता मंगेश्कर पुरस्कार मिला था ।


एवं भरत मुनि सम्मान 2012 मे सर्वश्रेष्ठ नृत्य निर्देशन हेतु राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार फिल्म विश्वरूपम के लिये मिला था। इनके साथ ही इन्हें काशी हिन्दू विश्वविद्यालय एवं खैरागढ़ विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट की उपाधि मानद प्राप्त हुई थी।दुनिया के हर हिस्से में अपने कथक का प्रदर्शन कर चुके बिरजू महाराज बेहतरीन कोरियोग्राफर रहे और फिल्मी दुनिया ने भी इसे माना। वह कला की दुनिया के उन गिने-चुने लोगों में से थे, जिन्हें लोक तोड़ना अच्छा लगता है। सारे वाद्ययंत्र उनके इशारे समझते थे। गले की मिठास ऐसी कि पनघट भी मुग्ध हो जाए। शायद इसकी वजह यह भी कि पिता अच्छन महाराज की कक्षाओं में बैठ-बैठकर नन्हे से बिरजू ने लय और ताल को मन में उतार लिया था।


दुनिया से अलविदा कहते वक्त अंतिम क्षण :- दरअसल बिरजू महाराज रविवार रात बच्चों के साथ नई दिल्ली स्थित अपने घर में ‘अंताक्षरी’ खेल रहे थे। पोती रागिनी बताती हैं कि वह लेटे हुए थे तभी अचानक उनकी सांसें असामान्य होने लगीं शायद दिल का दौरा पड़ा था। यह रात 12ः15 से 12ः30 बजे के बीच हुआ था परिवार वाले उन्हें तुरंत अस्पताल ले गए लेकिन दुर्भाग्य से वहाँ वह उन्हें बचा नहीं पाए ।प्रख्यात कथक नर्तक बिरजू महाराज अगले महीने 84 वर्ष के हो जाते, लेकिन रविवार देर रात दुर्भाग्य से उनकी सांसें हमेशा के लिए थम गईं। 






 

श्रद्धांजलि :- मशहूर भारतीय नर्तक पंडित बिरजू महाराज के जाने पर देश भर के संगीत एवं नृत्य प्रेमियों को बहुत दुख हुआ जिसके चलते उनके सभी चाहने वाले एक - एक करके उन्हें श्रद्धांजलि देने लगे इनमें मुख्य रूप से पीएम मोदी ने तस्वीर के जरिए किया याद

कथक सम्राट पंडित बिरजू महाराज के निधन पर पीएम मोदी ने शोक जताया। पीएम ने बिरजू महाराज के साथ अपनी एक तस्वीर ट्वीट करते हुए लिखा कि, भारतीय नृत्य कला को विश्वभर में विशिष्ट पहचान दिलाने वाले पंडित बिरजू महाराज जी के निधन से अत्यंत दुख हुआ है। उनका जाना संपूर्ण कला जगत के लिए एक अपूरणीय क्षति है। शोक की इस घड़ी में मेरी संवेदनाएं उनके परिजनों और प्रशंसकों के साथ हैं। ओम शांति। राष्ट्रपति ने दी श्रद्धांजलि महान कथक सम्राट बिरजू महाराज का निधन अपने आप में एक युग का अंत है। उनके जाने से भारतीय संगीत और सांस्कृतिक जगत में एक रिक्त स्थान बन गया है। उन्होंने कथक को विश्व के पटल पर शोहरत दिलाई और खुद भी एक महान कलाकार बने। उनके परिवारजनों को मेरी तरफ से संवेदना।


उपराष्ट्रपति ने शोक व्यक्त किया

बिरजू महाराज के निधन पर उप राष्ट्रपति सचिवालय ने नायडू को उद्धृत करते हुए ट्वीट किया कि, वैश्विक स्तर पर प्रख्यात कथक नर्तक अपनी अनूठी शैली की वजह से स्वयं में संस्था थे और पूरी दुनिया के लिए प्रेरणा थे। उनका निधन पूरे कला जगत के लिए बड़ी क्षति है। उप राष्ट्रपति ने कहा मैं हृदय से उनके परिवार के प्रति संवेदना व्यक्त करता हूं। ओम शांति। इसके अतिरिक्त मशहूर गायक अदनान सामी, फिल्म निर्देशक सुभाष घई तथा कमल हासन प्रमुख है ।