Sahitya Samhita

Sahitya Samhita Journal ISSN 2454-2695

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बोलते सपने Bolte Sapne


 जब ख्वाबों की माला पिरोई अपने लिए तो लोगों का हस्तक्षेप कैसा।

जब स्वप्न संजोए अपनों के लिए फिर जमाने का डर कैसा।

जब चाह रखी आसमान छूने की तो ऊंचाइयों का डर कैसा।

जब उतारी है पानी में कश्ती अरमानों की फिर गहराइयों का डर कैसा।

जब अकेले ही तय करना है रास्ता इस काली रात का तो अंधेरे का डर कैसा।

जब जुनून चढ़ा है इस मेले में खुद को खोजने का फिर भीड़ का डर कैसा।

जब मंजिल ही है सरहदों से पार तो हदों को नापना कैसा।

जब जाना ही है मौत से हार फिर जिंदगी को आंकना कैसा।


Rajan Khaira

Research Scholar, Department of English

Govt. P. G. College Bisalpur, Pilibhit. UP

Email- rajankhaira9@gmail.com