दोस्तों आज शहीद दिवस था, दरअसल आज का दिन भारतीय इतिहास में बहुत खास माना गया है, आज ही के दिन स्वतंत्रता संग्राम में 3 भारतीय सपूतों भगत सिंह, सुखदेव तथा राजगुरु ने हंसते हसते फांसी को अपने गले लगाया था । आज देश - भर में विद्यालयों, कॉलेजों तथा विश्वविद्यालयों में लेखन, भाषण, गीत - कविता आदि के माध्यम से शहीद दिवस मनाकर उन्हें श्रद्धांजलि दी तथा इस अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तथा गृहमंत्री अमित शाह ने ट्वीट कर श्रद्धांजलि अर्पण करी ।
और इस लिए आज 23 मार्च को भारत में शहीद या शहीदी दिवस के रूप में मनाते हैं, आज का दिन देश के लिए बहुत खास है. आज ही के दिन स्वतंत्रता की लड़ाई में भारत के तीन सपूतों ने हंसकर फांसी की सजा को गले जो लगाया था.
जी बिल्कुल... हम बात कर रहे हैं शहीद भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु की शहादत के बारे में...
आइए विस्तार से जानते हैं आज के दिवस को हम क्यों शहीद दिवस के रूप में मनाते हैं तथा क्या था भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु का देश की आजादी में बलिदान ।
पर पहले जानते है भगतसिंह के जीवन संबंधी विशेष बाते :- भगत सिंह ने कभी शादी नहीं करी थी. शादी की बात चलने पर उन्होंने अपना घर त्याग दिया था. उनका मानना था कि, "अगर गुलाम भारत में मेरी शादी हुई, तो मेरी वधु केवल मृत्यु होगी".
वीर भगत सिंह को मृत्यु दंड की सजा 7 अक्टूबर 1930 को सुनाई गई थी जब वे जेल गए तो वहाँ जेल में कैदियों के साथ होने वाले भेदभावों के विरोध में उन्होनें 116 दिन की भूख हड़ताल करी थी,
शहीद - ए - आजम वीर भगत सिंह को फांसी की सजा देने वाले जज का नाम जी.सी. हिल्टन था,
इतिहासकारों के अनुसार भगत सिंह की फाँसी के वक्त कोई भी मजिस्ट्रेट मौके पर रहने को तैयार नहीं था.
भगत सिंह की मौत के असली वारंट की अवधि खत्म होने के बाद एक जज ने वारंट पर साइन किए तथा फांसी के समय तक उपस्थित रहा
कुछ दस्तावेजों के अनुसार भगत सिंह की अंतिम ईच्छा ये थी कि उन्हें उनकी मृत्यु की सजा फांसी पर लटकाने के स्थान पर गोली मार कर दी जाए ।
सुखदेव का जीवन :- सुखदेव का जन्म 15 मई 1907 को पंजाब राज्य के लुधियाना शहर में हुआ था, इनका पूरा नाम सुखदेव थापर था. वर्तमान में सुखदेव के नाम पर दिल्ली के विश्वविद्यालय में शहीद सुखदेव कॉलेज ऑफ बिजनेस स्टडीज नाम से एक सुप्रसिद्ध कॉलेज है, इसके अतिरिक्त इनकी जन्मस्थली लुधियाना में शहीद सुखदेव थापर इंटर-स्टेट बस टर्मिनल का नाम इन्हीं के सम्मान में रखा गया है।
राजगुरु का जीवन :- राजगुरू का जन्म 24 अगस्त 1908 को पुणे जिला के खेडा गांव में हुआ था, इनका पूरा नाम शिवराम हरि राजगुरु है राजगुरु महज 16 वर्ष की आयु में ही हिंदुस्तान रिपब्लिकन आर्मी में शामिल हो गए थे।
जब 8 अप्रैल 1929 को भगत सिंह ने सेंट्रल असेम्बली में हमला किया था तब इस दौरान राजगुरु भी वहाँ मौजूद थे, इनकी याद में इनके जन्मस्थान खेड का नाम परिवर्तित कर राजगुरु नगर कर दिया था ।
आगे का विस्तार :- इतिहासकारो के अनुसार इन तीनों को फाँसी देने के लिए 24 मार्च 1931 का दिन तय किया गया था जिसके लिए भारत हेतु अपने प्राणों को हंसकर कुर्बान करने वाले इन तीनों बहादुरों को लाहौर सेंट्रल जेल में रखा गया था परंतु अंग्रेजों ने इस सब में अचानक परिवर्तन कर दिया तथा तय तारीख से 1 दिन पूर्व ही इन्हें फांसी दे दी गई। इसके पीछे का कारण यह था कि अंग्रेजों को यह भय था कि फाँसी वाले दिन कही लोग उग्र न हो जाए.
क्योंकि इन तीनों की उस वक्त देश के युवाओं तथा अन्य लोगों में काफी प्रसिद्धि थी, इन तीनों को 1 दिन पूर्व भी फाँसी की सजा चुपके-चुपके दी गई थी. इसकी सूचना किसी को भी नहीं होने दी गई।
भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अहम बलिदान देने वाले भगत सिंह, सुखदेव तथा राजगुरु को आज ही के दिन यानी 23 मार्च 1931 को अंग्रेजों ने फांसी की सजा दी थी और तभी से हम हर वर्ष उनकी याद में इस दिन को शहीद दिवस के रूप में मनाते आ रहे हैं।