Sahitya Samhita

Sahitya Samhita Journal ISSN 2454-2695

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मिथिला पेंटिंग : भारतीय चित्रकला की एक खूबसूरत शैली

 पौराणिक कथाओं के अनुसार मधुबनी चित्रकारी या मिथिला पेंटिंग मिथिला क्षेत्र की महिलाओं द्वारा शुरू की गई थी 


भारत विभिन्न कलाओं और संस्कृतियों का देश है। हर राज्यों में इसकी महक देखी जा सकती है। इन्हीं कलाओं में से एक है मिथिला पेंटिंग जिसे मधुबनी पेंटिंग और मधुबनी आर्ट भी कहा जाता है। मिथिला पेंटिंग भारतीय चित्रकला की एक शैली है, जो भारत के उत्तर बिहार खासकर मिथिलांचल के दरभंगा, मधुबनी, सीतामढ़ी, सिरहा, और धनुषा जैसे क्षेत्रों में प्रचलित है। इसके साथ ही ये नेपाल में भी की जाती हैं।  शुरुआत में ये पेंटिंग्स घर के आंगन और दीवारों पर रंगोली की तरह बनाई जाती थीं लेकिन बाद में समय के साथ धीरे-धीरे ये कपड़ों, दीवारों और कागजों पर भी की जाने लगी।

मिथिला पेंटिंग का इतिहास

पौराणिक कथा के अनुसार मधुबनी चित्रकारी या मिथिला पेंटिंग मिथिला क्षेत्र की महिलाओं द्वारा शुरू की गई थी। प्रमुख रूप से मधुबनी चित्रकारी ब्राह्मण और कायस्थ महिलाओं द्वारा की जाती थी। लेकिन बाद में पुरुष भी इसमें रूचि लेने लगे थे। महिलाएँ मिथिला पेंटिंग के लिए परंपरा के अनुसार गीली मिट्टी या गाय के गोबर से लेपित दीवारों का इस्तेमाल करती थी। सामाजिक संस्कृति से जुड़ा होने के कारण इसमें लोक संस्कृति की झलक को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। 




मिथिला चित्रकारी में सीता-राम, राधा-कृष्ण, नैना-जोगिन, समा-चकेवा. जट-जटिन के चित्रांकन की प्रथा रही है। बढ़ते समय के साथ इस चित्रकला का शैलियों और परंपराओ को बनाए रखते हुए इसमें कई नए विषयों को भी जोड़ा गया जिनमें रामायण के एपिसोड, स्थानीय महाकाव्य और किस्से, अनुष्ठान गतिविधियां, ग्राम जीवन, यहां तक ​​कि आत्मकथात्मक चित्र भी शामिल है और 2000 के बाद से, इसमें स्थानीय, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय घटनाओं को भी चित्रित किया गया जिनमें आतंकवाद, ग्लोबल वार्मिंग, बाढ़, दहेज, कन्या भ्रूण हत्या और  शिक्षा, आदि शामिल है। 



मिथिला पेंटिंग की शुरुआत

पौराणिक कथाओं के अनुसार मिथिला पेंटिंग की शुरुआत रामायण काल में हुई थी। त्रेतायुग में मिथिला के राजा जनक ने अपनी पुत्री सीता के विवाह में अपनी जनता को आदेश दिया कि सभी लोग अपने घरों की दीवारों और आंगनों पर पेंटिंग बनाए जिसमें मिथिला नगरी की संस्कृति की झलक हो। जिसे देख कर अयोध्या से आए बारातियों को मिथिला की महान संस्कृति का पता चले।

इस विशेष तरह की कलाकारी की चर्चा पूरे जनकपुर में होने लगी जिसके बाद जनकपुर नगर के अलावा उसके अगल-बगल के क्षेत्रों में भी विशेष सुंदरता के कारण कलाकारी की सजावट शुरू हुई। 



 

शुरुआती दौर में मिथिला पेंटिंग बनाने के लिए घरेलू विधि द्वारा तैयार किए रंगों का ही इस्तेमाल किया जाता था। इसके ज़रिये अलग-अलग जगहों पर चटख रंग से रंगकर पेंटिंग की सुंदरता को बढ़ाया जाता था।

घरेलू विधि द्वारा रंगों को तैयार करने में हल्दी, केले का पत्ता, लाल रंग के लिए पीपल की छाल तथा चावल के पानी (चौरेठा) का भी उपयोग किया जाता था और चित्र बनाने के लिए बांस की कुंची या कलम का प्रयोग किया जाता था।  मधुबनी चित्र को बनाने के लिए घरेलू विधि द्वारा तैयार रंगों का ही इस्तेमाल किया जाता है ताकि विशेषता बरकरार रहे और चमक स्पष्ट दिखे।

 

मिथिला पेंटिंग में इस्तेमाल होने वाले रंग



 

मिथिला पेंटिंग में चटख रंगों का बखूबी इस्तेमाल किया जाता है, जैसे गहरा लाल, हरा, नीला और काला। चटख रंगों को बनाने के लिए अलग-अलग रंगों के फूलों और उनकी पत्तियों को तोड़कर उन्हें पीसा जाता है फिर उन्हें बबूल के पेड़ की गोंद और दूध के साथ घोला जाता है। पेंटिंग्स में कुछ हल्के रंग भी यूज होते हैं, जैसे पीला, गुलाबी और नींबू रंग। लाल रंग के लिए पीपल की छाल और सफेद रंग के लिए दूध या फिर चुना आदि का इस्तेमाल किया जाता है।

 

आज के समय में मिथिला पेंटिंग की पॉपुलैरिटी बहुत बढ़ चुकी है जिसे देख़ते हुए अब कलाकार आर्टीफीशियल पेंट्स का भी इस्तेमाल करने लगे हैं और लेटेस्ट कैनवस पर बनाने लगे हैं।  

 

मिथिला पेंटिंग की खासियत

 

मिथिला पेंटिंग बनाने के लिए केवल माचिस की तीलियों और बांस की कलम का इस्तेमाल किया जाता है|

 

इसकी सबसे खास बात यह है की इसे जिस कागज पर बनाया जाता है उसे अपने हाथों से ही तैयार किया जाता है साथ ही कागज को तैयार करने के लिए उस कागज पर गोबर का घोल और बबूल के पेड़ के गोंद को एक साथ मिलाया जाता है और उसके बाद सूती के कपड़े के सहारे उस घोल को पूरे कागज पर लगाया जाता है फिर उसे धूप में सूखने के लिए छोड़ दिया जाता है। जिसके बाद ही उस पर चित्र बनाया जाता है। 





मिथिला पेंटिंग या मधुबनी चित्रकला के लिए ऐसा कहा जाता है कि चित्र बनाते समय कहीं भी खाली स्थान नहीं छुटना चाहिए नहीं तो दुष्ट आत्मा का प्रवेश हो जाता है। इसलिए सभी चित्रों को रंग और रेखाओं से भरा जाता है।

 

मिथिला पेंटिंग की खास विशेषता यह भी है की चित्रित वस्तुओं को मात्र सांकेतिक स्वरूप ही दिया जाता है साथ ही रेखा प्रधान चित्र होने के कारण चित्र में रेखा की प्रधानता स्पष्ट रूप से दिखती है।