Sahitya Samhita

Sahitya Samhita Journal ISSN 2454-2695

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तेज, प्रताप एवं यश की प्राप्ति के लिए करें सूर्य उपासना

पाठकों, पौराणिक समय से ही भगवान सूर्य की उपासना का उल्लेख मिलता है। भगवान सूर्य को वेदों में जगत की आत्मा और ईश्वर का नेत्र बताया गया है। सूर्य को जीवन, स्वास्थ्य एवं शक्ति के देवता के रूप में मान्यता प्राप्त हैं। सूर्य नारायण की कृपा से ही धरती पर जीवन बरकरार है। ऋषि-मुनियों ने उदय होते हुए सूर्य को ज्ञान रूपी ईश्वर बताते हुए सूर्य की साधना - आराधना को अत्यंत कल्याणकारी बताया है। प्रत्यक्ष देव होने के कारण सूर्य की उपासना शीघ्र ही फल देने वाली मानी गई है। जिनकी साधना स्वयं प्रभु श्री राम ने भी की थी। हम आपको बता दें कि प्रभु श्रीराम के पूर्वज भी सूर्यवंशी थे। भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र सांब भी सूर्य की उपासना करके ही कुष्ठ रोग दूर कर  किया  था।





आइए जानते है, कैसे करते है सूर्य साधना :- भगवान सूर्य की दिन के तीन प्रहर की साधना की जाती है जो कि विशेष रूप से फलदायी होती है। 

(i) प्रातःकाल के समय सूर्य की साधना से आरोग्य की प्राप्ति होती है।

(ii) दोपहर के समय की साधना करने से साधक के मान-सम्मान में वृद्धि होती है।

(iii) संध्या काल के समय की विशेष रूप से की जाने वाली सूर्य की उपासना सौभाग्य को जगाती है और संपन्नता लाती है।








साथ ही आप इन मंत्रो का जाप कर सकते है इनके करने से आपकी मनोकामना पूर्ण होगी ।




भगवान सूर्य की साधना से मंत्रों का जप करने पर मनोकामनाएं शीघ्र ही पूर्ण होती है। सुख-समृद्धि और अच्छी सेहत का भी आशीष प्राप्त होता है। तमाम तरह की बीमारीयाँ और जीवन से जुड़े दुर्भाग्य एवं अपयश दूर हो जाते हैं। सूर्य के आशीर्वाद से आपके भीतर एक नई ऊर्जा का संचार होता है। जीवन में सुख-समृद्धि तथा अपार सफलता दिलाने वाले सूर्य मंत्र इस प्रकार हैं -



ॐ सूर्याय नमः।

ॐ भास्कराय नमः।

ॐ रवये नमः।

ॐ मित्राय नमः।

ॐ भानवे नमः।

ॐ खगय नमः।

ॐ पुष्णे नमः।



ॐ घृणि सूर्याय नमः।।

ॐ ऐहि सूर्य सहस्त्रांशों तेजो राशे जगत्पतेए अनुकंपयेमां भक्त्याए गृहाणार्घय दिवाकररू।।

ॐ ह्रीं घृणिः सूर्य आदित्यः क्लीं ॐ।।

एहि सूर्य सहस्त्रांशो तेजोराशे जगत्पते।

अनुकम्पय मां भक्त्या गृहणाध्र्य दिवाकर।।



योग साधना में सूर्य साधना का भी है खास महत्व :-

भगवान सूर्य की साधना से न कि सिर्फ सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है, बल्कि आरोग्य भी मिलता है। सूर्य को किए जाने वाले नमस्कार को सूर्य नमस्कार अथवा सर्वांग  व्यायाम भी कहा जाता है। इसके करने से अच्छी सेहत के साथ-साथ मानसिक शांति भी प्राप्त होती है। हम सूर्य नमस्कार के समय विभिन्न मंत्रो का प्रयोग करते है।  



1. ॐ सूर्याय नमः।

2. ॐ भास्कराय नमः।

3. ॐ रवये नमः।

4. ॐ मित्राय नमः।

5. ॐ भानवे नमः।

6. ॐ खगय नमः।

7. ॐ पुष्णे नमः।

8. ॐ मारिचाये नमः।

9. ॐ आदित्याय नमः।

10. ॐ सावित्रे नमः।

11. ॐ आर्काय नमः।

12. ॐ हिरण्यगर्भाय नमः।



सात अश्व से मिलकर बना हुआ है सूर्य भगवान का रथ :- हमारे इस संसार इस सृष्टि के प्रत्यक्ष देवता सूर्य भगवान के रथ में सात घोड़े शामिल हैं, जिन्हे शक्ति एवं स्फूर्ति का प्रतीक माना जाता है। भगवान सूर्य का रथ यह प्रेरणा देता है कि हमें अच्छे कार्य करते हुए सदैव आगे बढ़ते रहना चाहिए, तभी जीवन में सफलता मिलती है एवं हम अपनी मंजिल प्राप्त कर पाते है।


 




भगवान सूर्य की साधना विधि :- सनातन परंपरा के अनुसार प्रत्यक्ष देवता सूर्य की साधना-उपासना शीघ्र ही फल देने वाली मानी गई है। सूर्यदेव की पूजा के लिए सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान करें। इसके पश्चात् उगते हुए सूर्य का दर्शन करते हुए उन्हें ॐ घृणि सूर्याय नम: कहते हुए जल अर्पित करें। सूर्य नारायण को दिए जाने वाले जल में लाल रोली, लाल चंदन, लाल फूल मिलाकर जल अवश्य दें। सूर्य को अर्घ्य देने के पश्चात्प लाल आसन में बैठकर पूर्व दिशा में मुख करके पवित्र मन के साथ सूर्य के मंत्र का कम से कम 108 बार जप भी करना चाहिए।







वैदिक काल से ही हमारे देश में सूर्य की पूजा का प्रचलन रहा है। पहले यह साधना मंत्रों के माध्यम से हुआ करती थी लेकिन बाद में उनकी मूर्ति पूजा भी प्रारंभ हो गई। जिसके बाद से बहुत जगहों  पर उनके भव्य मंदिर बनवाए गए थे। प्राचीन काल में बने भगवान सूर्य के अनेक मन्दिर आज भी भारत में स्थित हैं। भगवान भास्कर की साधना-अराधना से जुड़े प्रमुख प्राचीन मंदिरों में कोणार्क, मार्तंड और मोढ़ेरा आदि आते हैं।





रविवार का दिन भगवान सूर्य को समर्पित  है। इस दिन भगवान सूर्य की साधना-आराधना करने पर शीघ्र ही उनकी आर्शीवाद एवं कृपा प्राप्त होती है। रविवार के दिन भक्ति भाव से किए गए पूजन से प्रसन्न होकर प्रत्यक्ष देवता सूर्यदेव अपने भक्तों को आरोग्य होने का  फल प्रदान करते हैं।



सिर्फ प्रात काल ही नहीं सायं काल में भी कर सकते है सूर्य साधना :- सूर्य साधना अथवा सूर्य देव की उपासना सिर्फ उदय होते समय ही नहीं हबल्कि अस्त होते समय भी की जाती है। भगवान दिनकर की डूबते हुए साधना सूर्य षष्ठी के पर्व पर की जाती है। जिसे हम छठ पूजा के रूप में जानते हैं। इस दिन सूर्य देवता को अघ्र्य देने से इस जन्म के साथ-साथ, पिछले जन्म में किए गए पाप भीज्ञनष्ट हो जाते हैं। अस्त हो रहे सूर्य को पूजन करने के पीछे उद्देश्य भी यहीं होता है कि हम सूर्य भगवान को आज शाम को हम आपसे यह विनती करते हैं कि कल प्रातःकाल का पूजन आप स्वीकार करें और हमारी मनोकामनाएं शीघ्र ही पूर्ण करें।