वैदिक कालीन गुरुकुल शिक्षा प्रणाली
Abstract
हमारे देश में प्राचीन समय में वैदिक काल में दो प्रकार की शिक्षण प्रणाली प्रचलित थी। एक प्रकार की शिक्षा प्रणाली में विद्यार्थी को को गुरु, आचार्य के पास जाकर ब्रह्मचर्य पालन के साथ अंतेवासी बनकर रहना पड़ता था। जैसा कि -
आचार्यो ब्रह्मचर्येण ब्रह्मचारिण मिच्छते।( अथर्व.११/५/१७) ब्रह्मचर्य के द्वारा आचार्य ब्रह्मचारी की प्राप्ति की कामना करता है। उपनयमानो ब्रह्मचारिणं कृणुते गर्भपन्तः । (अथर्व ११।५।६) अर्थात् आचार्य उपनयन संस्कार करके ब्रह्मचारी को अपनी रक्षा में लेते हैं यह कार्य गुरुकुल ऋषि कुल विद्यापीठ आदि के रूप में शिक्षण स्थलों के रूप में चलता था इनमें ब्रह्मचारी को लोक की शिक्षा तथा ब्रह्म की शिक्षा दोनों दी जाती थी ।