हृदय –प्राण
Abstract
विरान हुए आकाश का सूनापन
तुम -
क्यों धारण किए हो ?
संसार की नीरवता को
तुम -
क्यों खुद में कैद किए हो ?
क्यों मेरे हृदय के प्राण ?
- क्यों ?
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क्यों तुम वृक्षों के
पत्तों की तरह
हवाओं के सहारे बह गए ?
क्यों तुम फूलों की
ताजगी, महक को छोड़
चुपचाप मुरझा गए ?